Transistor क्या हैं इसका उपयोग और यह कैसे काम करता हैं?

ट्रांजिस्टर Transistor एक छोटा दिखने वाला इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस होता है। जिसका उपयोग आधुनिक तकनीकी या यंत्र वाले उपकरणों के निर्माण में किया जाता हैं। प्रारंभिक समय के कम्प्यूटरों के कार्य करने की गति में वृद्धि करने में भी इसका उपयोग अधिक मात्रा में किया जाता था। 

यह किसी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को तीव्र गति से कार्य करने में उसकी सहायता करता हैं। जिस कारण इसका उपयोग अधिक मात्रा में किया जाता हैं। इसका उपयोग Electronic Circuit के निर्माण में भी किया जाता हैं। Amplification जैसे उपकरणों के निर्माण में भी यह अपनी अहम भूमिका निभाता हैं। जिस कारण हम कम इनपुट में अधिक आउटपुट प्राप्त कर पाते हैं। 

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सामान्य शब्दों में कहें तो ट्रांजिस्टर एक अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण हैं जिसका निर्माण इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण कार्य मे किया जाता हैं। क्या आप जानते हैं कि आप अपने घर मे एक स्विच के माध्यम से करंट को कैसे नियंत्रित करते हैं? तो चलिए आज हम इसी संबंध में जानते हैं और इस पोस्ट के माध्यम से आसान शब्दों में समझने का प्रयास करते हैं कि ट्रांजिस्टर क्या है और इसका उपयोग। What is Transistor in Hindi

ट्रांजिस्टर क्या हैं? |What is Transistor in Hindi

ट्रांजिस्टर एक अर्द्धचालक (Semiconductor) उपकरण हैं। जिसका उपयोग बिजली के प्रवाह या वोल्टेज में संतुलन बनाये रखने के लिए किया जाता हैं। यह अपना कार्य दो आधारों में पूर्ण करता हैं- स्विच और एम्पलीफायर। सामान्य शब्दों में हम इसे समझने का प्रयास करें तो यह एक ऐसा उपकरण हैं जो विधुत के कार्यों और उनमे संतुलन बनाये रखने का कार्य करता हैं। इसी के आधार पर हम किसी विधुत डिवाइस या उसकी स्थिति को देख और समझ पाते हैं। 

एक ट्रांजिस्टर का निर्माण Emitter, Collector, Base की सहायता से किया जाता हैं। जिन्हें विधुत लीड कहा जाता हैं। यह अनेकों इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में एक कॉम्पोनेन्ट का काम करता हैं। यह बाइनरी कोड (0,1) के अनुसार अपना कार्य करता है। जो कि एक Machine Language हैं जिसका उपयोग किसी मशीनी उपकरण को निर्देश देने के लिए किया जाता हैं। 

ट्रांजिस्टर को विज्ञान के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अविष्कार माना गया हैं क्योंकि इसी के आधार पर विधुत को संतुलन और नियंत्रित करने का कार्य किया जाता हैं। इसके निर्माण में सिलिकॉन और जेर्मेनियम का उपयोग किया जाता हैं। जो इसे विधुत को संतुलन करने में सहायता प्रदान करते हैं। यह वह उपकरण हैं जिसका निर्माण p और n प्रकार के अर्द्धचालक की सहायता से किया जाता हैं। जब दो प्रकार के समान अर्द्धचालक को एक साथ मध्य में रखा जाता हैं तो उसे Transistor कहा जाता हैं। 

हम जब किसी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का उपयोग तेजी से कर पाते हैं उसका प्रमुख कारण ट्रांजिस्टर ही होते हैं। इसकी लागत भी कम होती हैं, जिस कारण इनका उपयोग अधिक मात्रा में किया जाता हैं। इनमें तकनीकी खराबी आने की आशंका भी कम होती हैं जिस कारण इनका उपयोग अधिक समय तक लगातार किया जा सकता हैं। 

सामान्यतः इसका उपयोग स्विच और एम्पलीफायर के लिये किया जाता हैं। यह इलेक्ट्रॉनों को किसी प्रकार की हानि होने से भी रोकता हैं। जिस कारण इसका उपयोग Microprocessor में लगी प्रत्येक चिप मे किया जाता हैं। 

Transistor का अविष्कार और इतिहास 

कंप्यूटर की पीढ़ियों (Generation of Computer) के प्रथम चरण में कंप्यूटर निर्माण में Vacuum Tube का इस्तमाल किया जाता था। जिस कारण उनकी कार्य क्षमता कम थी और वह बहुत जल्दी गरम हो जाया करते थे। जिसको देखते हुए वर्ष 1947 में ट्रांजिस्टर का अविष्कार Walter Brattain, John Bardeen और William Shockley ने Bell नामक लेब में किया गया।  

इसके पश्चात Computer की Second Generation में वैक्यूम ट्यूब की जगह Transistor का उपयोग होने लगा। जिस कारण इस पीढ़ी के कंप्यूटर पहले की तुलना में अपना कार्य तीव्र गति से करने लगे थे। यह उस समय के अविष्कारों का सबसे बड़ा अविष्कार था। जिसने विज्ञान के इतिहास को एक नई पहचान दिलाई। 

ट्रांजिस्टर के घटक |Components of Transistor 

ट्रांजिस्टर का निर्माण टर्मिनलों या अर्द्धचालक पदार्थों की तीन लेयर की सहायता से किया जाता हैं। जिनका उपयोग कर्रेंट को ले जाने और बाहरी सर्किट से कनेक्शन संबंध स्थापित करने के लिए किया जाता हैं। टर्मिनलों की ही सहायता से वोल्टेज द्वारा करेंट को संतुलित या नियंत्रित किया जाता हैं। ट्रांजिस्टर का निर्माण 3 टर्मिनल की सहायता से किया जाता हैं। जो कि इस प्रकार हैं- 

1. Base (B) – यह ट्रांजिस्टर की नींव हैं, जिसका कार्य इसको सक्रिय करना होता है। यह दो सर्किट का निर्माण करती हैं। जिससे Transistor अपना कार्य आसानी से पूर्ण कर सकें। जिसकी सहायता से यह Input और Output की प्रक्रिया को पूर्ण करता हैं। बेस के निर्माण में पतले आकर के लेयर का उपयोग किया जाता हैं। जो ट्रांजिस्टर के मध्य भाग का निर्माण करता हैं। 

2. Collector (C) – यह ट्रांजिस्टर का Left भाग होता हैं जो इसका धनात्मक लेड होता हैं। इसका मुख्य उद्देश्य जंक्शन में से Majority Charges को हटाना होता हैं। जिसकी सहायता से कोई Processor तीव्र गति से किसी कार्य को कर पाने में सक्षम हो पाता हैं। 

3. Emitter (E) – यह डायोड का Right भाग होता हैं। जो बहुसंख्यक ट्रस्ट केरियर के बडे हिस्से के लिए कार्य करता हैं। यह ट्रांजिस्टर का ऋणात्मक लीड होता हैं जो बहुसंख्यक आवेश वाहक के तौर पर अपना कार्य करता है। 

ट्रांजिस्टर के प्रकार |Types of Transistor in Hindi

ट्रांजिस्टर को इनके कार्यों के अनुसार विभिन्न भागों में विभाजित किया जाता हैं। मुख्य रूप से हम इसको निम्न भागों में विभाजित कर सकते हैं- 

1. Bipolar Junction Transistor (BJT) – इस प्रकार के ट्रांजिस्टर का उपयोग विधुत या करंट को संतुलित रखने के लिए किया जाता हैं। इसका निर्माण में 3 कंपोनेंट का उपयोग किया जाता हैं- बेस, कलेक्टर और एमिटर। BJT (द्विधुवीय जंक्शन) अनेकों FET ट्रांजिस्टर एक संतुलन करने वाला उपकरण होता हैं। इनको NPN और PNP दो भागों में विभाजित किया जाता हैं। NPN वह होता हैं जिसमें अधिकतम संख्या इलेक्ट्रॉन की होती हैं। 

इसमें एमिटर से कलेक्टर की ओर जाने वाले इलेक्ट्रान ट्रांजिस्टर की सहायता से वर्तमान प्रवाह के बहुमत का माध्यम बनते हैं। वहीं PNP ट्रांजिस्टर ठीक इसके विपरीत अपना कार्य करते हैं। इसके अंतर्गत बहुमत वर्तमान वाहक छिद्र होता हैं। BJT को विस्तृत रूप से समझने के लिए यह आवश्यक हैं कि PNP और NPN को समझा जाये तो चलिए जानते हैं कि PNP और NPN क्या हैं? 

● PNP Transistor – जब एक प्रकार के बाइपोलर जंक्शन जिसमें 2 प्रकार के P सेमीकंडक्टर होते हैं उन्हें ही PNP Transistor कहा जाता हैं। इनके मध्य में N बॉक्स के माध्यम से दो P को विभाजित कर दिया जाता हैं। इसके मध्य में बेस होता हैं बाएं तरफ एमिटर और दाएं तरफ कलेक्टर आधारित डायोड होता हैं। इसके अंतर्गत अल्पसंख्यक आवेश वाहक होते हैं और छिद्र बहुसंख्यक वाहक होते हैं। इसमें एक एरो सिंबल लगा होता हैं। जो फ्लो हो रहें करेंट को इंगित करने का कार्य करता हैं।  

● NPN Transistor – इसके अंदर दो N प्रकार की परतों के मध्य p प्रकार की परत को रखा जाता हैं। जब किसी ट्रांजिस्टर का p पहलू मध्य में होता हैं तो उसे ही NPN कहा जाता हैं। इसमें इलेक्ट्रान आधारित टर्मिनल की सहायता से कलेक्टर से एमिटर की ओर प्रवाह होता हैं। इनका कार्य कमजोर सिग्नल को एम्पलीफाय करके बेस की ओर भेजना होता हैं। इस प्रकार के ट्रांजिस्टर में इलेक्ट्रान की गति की दिशा एमिटर से कलेक्टर की ओर होती हैं जिस कारण विद्युत या करंट उत्पन्न होता हैं। इस प्रकार के ट्रांजिस्टर का अधिक उपयोग सर्किट में किया जाता हैं। 

2. Field Effect Transistor – इस प्रकार के ट्रांजिस्टर निर्माण में भी 3 टर्मिनल का उपयोग किया जाता हैं। जिन्हें गेट, सोर्स और ड्रेन कहा जाता हैं। इस प्रकार के ट्रांजिस्टर का मुख्य कार्य वोल्टेज को नियंत्रित करना होता हैं और इसमें गेट टर्मिनल का कार्य स्रोत और नाली के मध्य के करंट को नियंत्रित करना होता हैं। इसके अंतर्गत P और N चैनल का उपयोग प्रवाह के लिए किया जाता हैं। 

इस प्रकार के ट्रांजिस्टर लागत में सस्ते और कार्य क्षमता में अधिक होते हैं जिस कारण इनका उपयोग वर्तमान समय मे अधिक मात्रा में किया जाता हैं। इस प्रकार के ट्रांजिस्टर में JFETs और MOSFETs को भी देखा जाता है। इन सभी ट्रांजिस्टर में अधिकतम रूप में समान क्षमता देखने को मिलती हैं। जिस कारण इन्हें संकुचित रूप में एक ही नजर से देखा जाता हैं। 

3. Diffusion Transistor – इस प्रकार के ट्रांजिस्टर का निर्माण Dopants और Semiconductor Substrate को फैलाने से होता हैं। सामान्यतः इसको भी एक BJT के रूप में ही देखा जाता हैं। किंतु फिर भी दोनों में सूक्ष्म प्रकार के अंतर देखने को मिलते हैं। लेकिन दोनों के कार्य करने के पीछे के उद्देश्यों में हमें समानता देखने को मिलती।हैं। 

Transistor का उपयोग

इसका उपयोग हम विधुत प्रवाह या करंट को नियंत्रित करने के लिए करते हैं। यह एक स्विच या एम्पलीफायर की तरह कार्य करता हैं। ट्रांजिस्टर का निर्माण टर्मिनलों या अर्द्धचालक पदार्थों की तीन लेयर की सहायता से किया जाता हैं। जिनको बेस,कलेक्टर और एमिटर कहा जाता हैं और इसी के आधार पर यह अपना सम्पूर्ण कार्य करता हैं। 

इसका मुख्य उपयोग एम्पलीफायर के कमजोर सिग्नल को तीव्र आउटपुट देने की क्षमता प्रदान करने के लिए किया जाता हैं। इलेक्ट्रॉनिक सर्किट बनाने मे भी इसका उपयोग अधिक मात्रा में किया जाता हैं और इसके साथ ही किसी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण की गति में वृद्धि करने के लिए भी इसका उपयोग अधिक मात्रा में किया जाता हैं। जैसे-प्रोसेसर आदि। 

ट्रांजिस्टर कैसे काम करता हैं? How Transistor Works in Hindi

अब तक आप अच्छे से समझ गए होंगे कि ट्रांजिस्टर क्या हैं और इसका उपयोग किस लिए किया जाता हैं। तो चलिए अब जानते हैं कि यह अपना कार्य कैसे करता हैं?

यह अपना कार्य 3 टर्मिनल की सहायता से करता हैं जैसे- बेस,कलेक्टर और एमिटर जिनकी सहायता से यह विधुत प्रवाह या करंट के प्रवाह को नियंत्रित रखता हैं। जिस कारण इलेक्ट्रॉनिक उपकरण अपना कार्य भली-भांति कर पाते हैं। इसकी सहायता से हम घर मे चल रहे बल्ब की ऊर्जा को एक बटन की सहयता से on और off कर सकते हैं। इसकी सहायता से हम ऊर्जा के प्रवाह को कम या अधिक भी कर सकते हैं। 

इसके मध्य के भाग को बेस कहा जाता हैं जो अपने दाएं और बाएं (एमिटर और कलेक्टर) को विभाजित करता हैं। इसका बेस ही वह होता हैं जो करंट के प्रवाह को एक स्विच या एम्पलीफायर की सहायता से नियंत्रित करता हैं। जैसे उसे कितना करेंट कब और किस मात्रा मे देना है। 

इसको उदाहरण के तौर पर हम समझने का प्रयास करें तो आप एक पानी के नल को लीजिये। पानी के नल की सहायता से हम जब चाहें जितनी मात्रा में चाहें उतना पानी ले सकते हैं। अर्थात अगर आप उसे बंद करते हैं तो पानी निकलना बंद हो जाता हैं और जब आप उसे खोलते हैं तो पानी आने लग जाता हैं। अगर आप उसे कम खोलते हैं तो वह कम पानी देता हैं और पूरा खोल देते हैं तो वह ज्यादा मात्रा में पानी देने लग जाता हैं। इसी तरह से ट्रांजिस्टर भी अपना कार्य करता हैं। 

स्विच की सहायता से हम जब चाहे जितनी मात्रा में चाहें उतनी मात्रा में करेंट को नियंत्रित कर उसका उपयोग कर सकते है। इसका बेस टर्मिनल ही वह होता हैं जो सम्पूर्ण रूप से इसकी विधुत प्रक्रिया को नियंत्रित करता हैं और आवश्यकता अनुसार ही कर्रेंट का फ्लो करता हैं। 

निष्कर्ष – Conclusion

इस आर्टिकल, ट्रांजिस्टर क्या हैं? (What is Transistor in Hindi) के महत्वपूर्ण बिंदु:

● ट्रांजिस्टर एक अर्द्धचालक (Semiconductor) उपकरण हैं। जिसका निर्माण 3 टर्मिनल की सहायता से किया जाता हैं- बेस,कलेक्टर और एमिटर। इसी के आधार पर या इसी की सहायता से यह अपना सम्पूर्ण कार्य करता हैं। 

● इसका मुख्य कार्य या उपयोग विधुत या करेंट को नियंत्रित करने या उनमें सन्तुलन बनाये रखने के लिए किया जाता हैं। इसका मध्य भाग जिसे बेस कहा जाता हैं वह बिजली की आपूर्ति और उसकी मात्राओं को सुनिश्चित करने का कार्य करता हैं। 

हम आशा करते हैं कि आपने हमारे इस आर्टिकल की सहायता से अच्छे से जान लिया होगा कि ट्रांजिस्टर क्या होता हैं और इसका उपयोग या यह कैसे काम करता हैं? अगर हमारा यह आर्टिकल आपके लिए लाभदायक रहा हो या इस पोस्ट से संबंधित आपके कोई प्रश्न या विचार हो तो कमेंट के माध्यम से उनको हम तक अवश्य पहुचाये।

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pankaj
Hello दोस्तों मेरा नाम Pankaj Pal हैं और मैं webtechnoo का लेखक और Co-Founder हुँ। मैंने MSc Computer Science से की हैं और मुझे Technology, Computers से जुड़े तथ्यों को सीखना और आप लोगों को सीखाना अच्छा लगता हैं। अगर आप भी नई-नई Technology के बारे में जानने में रुचि रखते हैं। तो हमारे Blog या Social Media के माध्यम से हमसे जरूर जुड़े रहें। (Jai Hind)

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